'भगवान श‍िव' के लिए व्रत रखना चाहते थे इरफान खान, ख्‍वाहिश सुन दंग रह गई थी फैमिली

इरफान खान (Irrfan Khan) राजस्‍थान के एक मुस्‍ल‍िम परिवार से ताल्‍लुक रखते थे। उनकी पत्‍नी सुतापा सिकदर हिंदू परिवार से हैं। खुद सुतापा बताती हैं कि एक बार इरफान ने यह कहकर पूरे परिवार को हैरान कर दिया था कि वह सोमवार को व्रत रखेंगे, क्‍योंकि यह भगवान श‍िव (Lord Shiva) का दिन है। सुतापा के मुताबिक, इरफान जीवन के आख‍िरी दो साल में व्रत करने को लेकर बहुत बेताब थे। यह अलग बात है कि वह भूखे नहीं रह सकते थे और इसलिए कभी व्रत नहीं कर पाए।

इरफान खान (Irrfan Khan) मुस्‍ल‍िम परिवार से थे। उनकी पत्‍नी सुतापा सिकदर हिंदू परिवार से। खुद सुतापा बताती हैं कि एक बार इरफान ने यह कहकर पूरे परिवार को हैरान कर दिया था कि वह सोमवार को व्रत रखेंगे, क्‍योंकि यह भगवान श‍िव (Lord Shiva) का दिन है।


'भगवान श‍िव' के लिए व्रत रखना चाहते थे इरफान खान, ख्‍वाहिश सुन दंग रह गई थी फैमिली

इरफान खान (Irrfan Khan) राजस्‍थान के एक मुस्‍ल‍िम परिवार से ताल्‍लुक रखते थे। उनकी पत्‍नी सुतापा सिकदर हिंदू परिवार से हैं। खुद सुतापा बताती हैं कि एक बार इरफान ने यह कहकर पूरे परिवार को हैरान कर दिया था कि वह सोमवार को व्रत रखेंगे, क्‍योंकि यह भगवान श‍िव (Lord Shiva) का दिन है। सुतापा के मुताबिक, इरफान जीवन के आख‍िरी दो साल में व्रत करने को लेकर बहुत बेताब थे। यह अलग बात है कि वह भूखे नहीं रह सकते थे और इसलिए कभी व्रत नहीं कर पाए।



धर्म को लेकर खुले विचारों के थे इरफान
धर्म को लेकर खुले विचारों के थे इरफान

हमारे सहयोगी 'ETimes' को दिए इंटरव्‍यू में सुतापा ने वाकये का जिक्र किया है। इरफान की पहली पुण्‍यतिथ‍ि (Irrfan Khan Death Anniversary) के मौके पर बात करते हुए सुतापा कहती हैं कि इरफान धर्म को लेकर बड़े खुले विचारों के थे। सुतापा खुद रमजान के पाक महीने में रोजा रखती हैं। वह बताती हैं कि कैसे इरफान ने ही उन्‍हें एक बार समझाया था कि रोजा रखने के लिए किसी का मुसलमान होना जरूरी नहीं है।



भूखे नहीं रह पाते थे इरफान, कहते थे- व्रत रखूंगा
भूखे नहीं रह पाते थे इरफान, कहते थे- व्रत रखूंगा

सुतापा बताती हैं कि इरफान भूखे नहीं रह सकते थे। वह कभी व्रत या उपवास नहीं करते थे। लेकिन जीवन के आख‍िरी वर्षों में इरफान की बात ने पूरी फैमिली को दंग कर दिया था। सारे परिजन ऐक्‍टर की बात सुनकर हैरान हो गए थे। सुतापा कहती हैं कि आख‍िरी दो साल में इरफान व्रत रखने को लेकर बड़े बेताब थे। वह कहते थे, 'एक दिन हफ्ते में मैं फास्‍ट‍िंग रखूंगा ही। मैंने सोच लिया है कि मैं सोमवार का फास्‍ट करूंगा, श‍िव जी का दिन होता है।'



'जिंदा होते तो आध्‍यात्‍म की राह पर निकल जाते'
'जिंदा होते तो आध्‍यात्‍म की राह पर निकल जाते'

सुतापा कहती हैं, 'उस वक्‍त वहां हमारे कई परिजन थे। सब इरफान की बात सुनकर दंग रह गए थे। यदि वह आज जिंदा होते तो शायद अपना ही कोई धर्म बना लेते। उनके लिए धर्म का मतलब आध्‍यात्‍म से था। यदि कुछ नहीं होता, कैंसर नहीं होता, तो वह निश्‍चय ही कुछ ऐसा कर लेते। वह फिल्‍मी दुनिया छोड़कर कहीं खुद की तलाश में निकल पड़ते।'



'वह खुद की ही यात्रा पर थे'
'वह खुद की ही यात्रा पर थे'

सुतापा आगे कहती हैं, 'वह खुद की ही यात्रा पर थे। खुद की तलाश, एक बड़ी दुनिया, इस दुनिया के समांतर एक अलग बड़ी दुनिया। वह खूब पढ़ते थे। आध्‍यात्‍म में उनकी गहरी रुचि थी।' सुतापा, इरफान की इस सोच को समझाते हुए कहती हैं, 'मैं इसे कैसे कहूं, मतलब एक यात्री होता है ना दुनिया में, वह वैसे ही थे।'



आख‍िरी दो साल में लिया उपनिषदों का ज्ञान
आख‍िरी दो साल में लिया उपनिषदों का ज्ञान

सुतापा ने बताया कि इरफान ने अपने जीवन के आख‍िरी दो साल में उपनिषदों का ज्ञान लिया। उन्‍होंने रामकृष्‍ण परमहंस को पढ़ा, विवेकानंद को पढ़ा। इरफान कभी बहुत धार्मिक नहीं रहे। ओशो और महावीर को भी वह खूब पढ़ते थे।



किसी भी तरह के भेदभाव को नहीं मानते थे इरफान
किसी भी तरह के भेदभाव को नहीं मानते थे इरफान

सुतापा नैशनल स्‍कूल ऑफ ड्रामा के दिनों से इरफान के साथ थीं। वहीं कैम्‍पस में दोनों को प्‍यार हुआ। सुतापा राइटर बनीं और इरफान थ‍िएटर से होते हुए टीवी और फिर फिल्‍मों में आ गए। सुतापा बताती हैं कि इरफान ने कभी औरत-मर्द, धर्म या ऐसी किसी भी टैग पर विश्‍वास नहीं किया।



शाही परिवार से रहा है इरफान का ताल्‍लुक
शाही परिवार से रहा है इरफान का ताल्‍लुक

इरफान के बारे में यह बात बहुत कम लोगों को पता है कि उनका ताल्‍लुक शाही परिवार (Irrfan Khan Royal Family) से रहा है। उनकी मां सईदा बेगम, टोंक जिले से थीं और पिता यासीन अली खान का टायर का बिजनस था। इरफान ने खुद एक इंटरव्‍यू में बताया था कि उनकी मां टोंक के शाही हाकिम परिवार से थीं। इस तरह उनका जन्‍म साहबजादे इरफान अली खान के रूप में हुआ था। लेकिन उन्‍हें न तो शाही रसूख पसंद था, न तो वह धर्म के बंधन में बंधे रहना चाहते थे। इसलिए उन्‍होंने अपने नाम से 'साहबजादे' हटा दिया।





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